ईदगाह

प्रेम का प्रसार करें

🌙 ईदगाह

लेखक: सतेन्द्र
(मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित, सरल, विस्तारित रूपांतरण)


प्रस्तावना

धूप खिली थी, आसमान नीला था और हवाओं में एक खास मिठास थी। चारों तरफ बच्चों की हँसी, घरों से उठती पकवानों की खुशबू और मंदिर-मस्जिद से आती घंटियों और अज़ानों की आवाज़ें माहौल में एक अलग ही उत्सव की आभा भर रही थीं। यह कोई आम दिन नहीं था — यह ईद का दिन था।

कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव में रहने वाले गरीब लेकिन मासूम, प्यारे और समझदार बच्चे हामिद से, जिसकी दादी अमीना ही उसकी पूरी दुनिया थी।


गाँव की सुबह और हामिद

ईद के दिन गाँव के हर घर में रौनक थी। बच्चे नये कपड़ों में, आँखों में चमक लिए चहक रहे थे। अमीर हो या गरीब, हर कोई आज थोड़ा ज़्यादा अच्छा दिखना चाहता था। लेकिन हामिद के पास पहनने को नया कुर्ता नहीं था। न ही कोई चप्पल या टोप। उसकी दादी ने बहुत कोशिश की थी कि कुछ अच्छा उसे पहनने को मिले, लेकिन गरीबी ने उसे मजबूर कर दिया था।

अमीना ने अपने पोते हामिद के लिए जो कुछ भी बना सकी, वही प्यार से परोस दिया — सूखी रोटी, थोड़ा सा अचार और एक मीठा बोल।

हामिद की माँ-बाप इस दुनिया में नहीं थे। दादी ही सबकुछ थीं। लेकिन उस पांच साल के बच्चे की आँखों में कभी शिकायत नहीं दिखी। उसमें एक अलग ही समझ थी। उसके भीतर उम्र से कहीं अधिक गहराई थी।


ईदगाह जाने की तैयारी

गाँव के सारे बच्चे जब अपने नए कपड़ों में इतराते हुए ईदगाह जाने लगे, तो हामिद भी उनके साथ चल पड़ा। सिर पर पुरानी टोपी, पैरों में नंगे पाँव, लेकिन आत्मा में भरपूर आत्मविश्वास।

रास्ते में बच्चे तरह-तरह की बातें कर रहे थे — मेले में कौन-कौन सी चीज़ें मिलेंगी, कौन-कौन सी मिठाइयाँ खाएँगे, झूले में कौन सबसे ऊँचा झूलेगा। हामिद मुस्कुरा रहा था। उसे इन सब चीजों से ज़्यादा कोई और बात याद आ रही थी — उसकी दादी की उँगलियाँ, जो रोटी पकाते-पकाते जल जाती थीं।


मेला और बच्चों की दुनिया

जैसे ही बच्चे ईदगाह पहुँचे, सामने एक छोटा-सा मेला था। वहाँ मिठाइयों की दुकानें, खिलौने, चूड़ियाँ, गुब्बारे, और लकड़ी के रंग-बिरंगे खिलौने बिक रहे थे। बच्चों ने अपने पैसों से मिठाइयाँ खरीदीं — कोई बालूशाही खा रहा था, कोई जलेबी में लिपटा हुआ था।

हामिद के पास सिर्फ तीन पैसे थे। लेकिन उसने न तो मिठाई खरीदी, न झूले पर बैठा। उसकी आँखें जैसे किसी और चीज़ की तलाश कर रही थीं। तभी उसे एक दुकान पर लोहे के चिमटे दिखे। वह चुपचाप उस दुकान पर गया।


हामिद की समझदारी

चिमटे की कीमत थी — तीन पैसे।

बच्चे जहाँ मिठाइयाँ और खिलौने खरीद रहे थे, हामिद ने चिमटा खरीद लिया।

बच्चे उस पर हँसने लगे — “क्या करेगा चिमटे का? न इसे खा सकता है, न झूला झूल सकता है, न खेल सकता है।”

लेकिन हामिद की आँखों में चमक थी।

उसने बड़े इत्मीनान से कहा,

“जब अम्मी रोटी बनाती हैं, तो उनका हाथ जल जाता है। अब ये चिमटा रखूंगा, तो उनका हाथ नहीं जलेगा। मैं तो उनके लिए ये लाया हूँ।”

सारी दुनिया के खिलौने, मिठाइयाँ, झूले — सब फीके पड़ गए उस बच्चे की इस मासूम और भावुक सोच के सामने।


घर वापसी और अमीना का भाव

जब हामिद घर पहुँचा, तो अमीना ने सोचा — शायद कुछ मिठाई लाया होगा। लेकिन जब उसने चिमटा निकाला, तो अमीना का दिल भर आया।

पहले तो उसने डाँटा — “पगला है तू? और कुछ नहीं मिला?”

लेकिन जब हामिद ने वो ही जवाब दिया —

“जब तुम रोटियाँ बनाती हो, तो हाथ जलता है न अम्मा… अब ये चिमटा पकड़कर रोटियाँ बनाना, तुम्हारा हाथ नहीं जलेगा।”

अमीना की आँखों से आँसू झर-झर बहने लगे। वो रो रही थी, पर ये आँसू दर्द के नहीं, प्यार और गर्व के थे।


हामिद: एक बच्चे की आत्मा में बसी ममता

हामिद सिर्फ पाँच साल का बच्चा था, लेकिन उसमें जो भावना थी — वो किसी बड़े से बड़े इंसान में भी नहीं होती। जहाँ बाकी बच्चे खुद के लिए सोचते हैं, वहाँ हामिद ने अपनी दादी के लिए सोचा।

उसके लिए ईद का मतलब था — खुशी बाँटना, किसी के काम आना।

उसने सीखा नहीं था ये सब — वो तो बस अपने दिल की सुनता था।


एक छोटी बात, बड़ा संदेश

मुंशी प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ की ये कहानी जितनी छोटी है, उतना ही बड़ा संदेश देती है। ये कहानी समाज को बताती है कि सच्चा प्यार क्या होता है। कोई बड़ी चीज़ देकर नहीं, बल्कि छोटी-छोटी बातों में भी इंसान दूसरों को खुश कर सकता है।

आज हम जिस दुनिया में रहते हैं, वहाँ रिश्ते, तोहफे और दिखावा बहुत है, पर भावना कम हो गई है। हामिद जैसे बच्चों की सोच हमें याद दिलाती है कि सच्चा प्रेम मतलब त्याग, सेवा और समर्पण होता है।


लेखकीय विचार (सतेन्द्र द्वारा)

जब मैंने ‘ईदगाह’ को पढ़ा, तो मेरे मन में यही ख्याल आया — क्या आज भी कोई हामिद है? क्या हम अपने जीवन में हामिद बन सकते हैं?

इस कहानी ने मुझे रुला भी दिया और सोचने पर भी मजबूर कर दिया। इसीलिए मैंने इसे सरल भाषा में, थोड़ा विस्तार से, आपके लिए लिखा ताकि आप इस कहानी को सिर्फ पढ़ें नहीं, बल्कि महसूस करें।

हामिद का चिमटा एक प्रतीक है — माँ की पीड़ा को समझने वाली मासूम आत्मा का प्रतीक


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