लेखक: सतेन्द्र
कहानी शीर्षक: पंच परमेश्वर (मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित, सरल और विस्तार से प्रस्तुत)
प्रस्तावना
हमारे गाँवों में पंचायत न केवल एक परंपरा है, बल्कि एक सामाजिक विश्वास का प्रतीक भी है। यह केवल न्याय का स्थल नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज़ सुनने की जगह होती है। न्याय और अन्याय की इसी लड़ाई को बड़ी ही सहजता, संवेदनशीलता और गहराई से मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानी “पंच परमेश्वर” में उकेरा है। यह कहानी न केवल अपने समय की सामाजिक जटिलताओं को दर्शाती है, बल्कि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
यह कहानी दो मित्रों – जुम्मन शेख और अलगू चौधरी – की है, जिनकी दोस्ती, स्वार्थ और ईमानदारी के इम्तिहानों से होकर गुजरती है। इस कहानी को हमने यहाँ विस्तार से और सरल हिंदी में पुनः रचा है, ताकि हर पाठक इसे अपनी आत्मा से महसूस कर सके।
जुम्मन और अलगू: अटूट दोस्ती
किसी गाँव में जुम्मन शेख और अलगू चौधरी नामक दो मित्र रहते थे। दोनों का रिश्ता इतना मजबूत था कि लोग उन्हें एक-दूसरे का साया कहते थे। जब एक बीमार होता, तो दूसरा दवा लेकर दौड़ पड़ता। जब एक की फसल खराब होती, तो दूसरा अपनी अनाज की बोरी उसके घर भेज देता।
वो दोनों एक-दूसरे की खुशी में खुश और दुःख में दुःखी हो जाते थे। लोग उनकी दोस्ती की मिसाल देते थे। लेकिन वक़्त कब दोस्ती को परखने का मौका दे दे, कोई नहीं जानता।
बूढ़ी खाला की पुकार
जुम्मन के पास एक बूढ़ी खाला (मौसी) थी, जिनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अपनी ज़मीन-जायदाद जुम्मन के नाम इसलिए कर दी थी कि वह आखिरी समय में उनका पालन-पोषण करे। लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीता, जुम्मन और उसकी पत्नी का व्यवहार बदल गया।
वह बूढ़ी औरत जो कभी घर की इज़्ज़तदार सदस्य थी, अब बोझ बन गई थी। उसे ताने मिलते, रूखा-सूखा खाना दिया जाता और बात-बात पर अपमानित किया जाता। अंत में, जब सहन की सीमा टूट गई, तो वह पंचायत में न्याय मांगने निकल पड़ी।
पंचायत की तैयारी
गाँव में पंचायत बुलाई गई। खाला ने अपनी व्यथा सबके सामने रखी। उसका चेहरा झुर्रियों से भरा था, लेकिन आंखों में सच्चाई की चमक थी। भीड़ में सन्नाटा था। सबको उसकी बातों ने विचलित कर दिया।
पंचायत में पंच के रूप में अलगू चौधरी को चुना गया। अब यहाँ कहानी में मोड़ आता है – क्योंकि जुम्मन उसका प्रिय मित्र था।
धर्म संकट: दोस्ती बनाम न्याय
अलगू के दिल में उथल-पुथल मच गई। सामने खड़ा था उसका सालों पुराना दोस्त और दूसरी तरफ थी एक बूढ़ी महिला की बेबसी।
भीतर एक आवाज़ आई:
“पंच बनकर कोई अपना या पराया नहीं होता। पंच मतलब परमेश्वर। पंच मतलब न्याय।”
अलगू ने आंखें बंद कीं, गहरी साँस ली और वो निर्णय सुनाया जिसने गाँव को हिला दिया:
“जुम्मन, तूने अपनी मौसी की संपत्ति तो ले ली, पर अब तुझे उनका पालन-पोषण भी करना होगा या वह ज़मीन उन्हें वापस करनी होगी।”
गाँव में सन्नाटा था। जुम्मन की आँखों में हैरानी, दर्द और क्रोध तैर रहा था। दोस्त ने ही उसके खिलाफ फ़ैसला सुनाया था।
दोस्ती में दरार
इस फ़ैसले के बाद जुम्मन और अलगू के रिश्ते में दरार आ गई। दोनों अब एक-दूसरे से कटने लगे। जुम्मन भीतर ही भीतर तिलमिला रहा था, और सोचता था:
“एक दिन मैं भी पंच बनूंगा और देखूँगा अलगू क्या करता है।”
किस्मत ने यह मौका जल्द ही दे दिया।
समय का फेर
कुछ महीनों बाद, अलगू चौधरी ने एक बैल किसी व्यापारी को बेचा। बैल बीमार हो गया और व्यापारी ने अलगू पर झूठा इल्ज़ाम लगा दिया कि बैल पहले से ही बीमार था। मामला पंचायत में पहुँचा और इस बार पंच चुना गया — जुम्मन शेख।
अब भूमिका बदल गई थी। अब जुम्मन के सामने धर्मसंकट था। सामने उसका पुराना मित्र था, जिसने कभी उसके खिलाफ फैसला दिया था।
गाँव वालों की निगाहें जुम्मन पर थीं। क्या वह बदला लेगा? या न्याय करेगा?
जुम्मन की आत्मा की पुकार
जुम्मन का अंतर्मन काँप उठा। जब वह पंच की कुर्सी पर बैठा, तो उसे महसूस हुआ कि अब वह सिर्फ जुम्मन नहीं, परमेश्वर का प्रतिनिधि है।
उसने गहराई से मामला सुना, साक्ष्य देखे और अंत में वही कहा, जो सत्य था:
“बैल स्वस्थ था। व्यापारी का इल्ज़ाम झूठा है। अलगू निर्दोष है।”
गाँव वाले चकित थे। अलगू की आँखों में आँसू थे। दोनों की नज़रों ने आपस में वर्षों की दोस्ती को फिर जीवित कर दिया। जुम्मन उठ खड़ा हुआ और अलगू को गले लगा लिया।
कहानी का सार
“पंच परमेश्वर” हमें सिखाती है कि जब कोई इंसान पंच बनता है, तो वह रिश्तों, स्वार्थों और भावनाओं से ऊपर उठकर केवल न्याय का प्रतिनिधि बन जाता है। उसमें ईश्वर का अंश होता है। उसकी ज़ुबान से जो निकले, वह न्याय हो — यही धर्म है।
यह कहानी आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है, जब हर दिन हमें सही और गलत के बीच चुनाव करना होता है। दोस्ती, भावनाएँ और समाज – इन सबके बीच ईमानदारी ही हमारा सबसे बड़ा धर्म है।
लेखक की टिप्पणी (सतेन्द्र की कलम से)
इस कहानी को मैंने इसलिए चुना क्योंकि इसमें भारतीय समाज, रिश्तों और न्याय की बुनियाद छुपी है। जुम्मन और अलगू जैसे किरदार हमें सिखाते हैं कि अगर अंतरात्मा ज़िंदा है, तो इंसान न्याय कर सकता है, भले ही उसके सामने खुद का नुकसान क्यों न हो।
आज जब समाज में न्याय बिक रहा है, जब रिश्ते स्वार्थ से तय हो रहे हैं, ऐसे में यह कहानी हमें चेताती है कि अगर पंच पद पर बैठे लोग ईश्वर को याद करें, तो हर गाँव, हर शहर, हर देश में न्याय का सूरज फिर उग सकता है।