मंत्र

प्रेम का प्रसार करें

🕊️ मंत्र

लेखक: सतेन्द्र
(मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित, सरल, विस्तारित रूपांतरण)


प्रस्तावना

सर्दियों का मौसम था। सूखे पत्तों की सरसराहट चारों ओर गूंज रही थी। गाँव में शाम के समय जब लोग अपने घरों की ओर लौटते, तो हल्की उतरती ठंड चुभा कर जाती।

ऐसे ही किसी शाम को, जब धूप की मुलायम लाली गाँव की मिट्टी पर चढ़ रही थी, एक विचित्र घटना हुई — एक ऐसा सीख जो बच्चों को डराता, आम लोगों को चौंकाता, और बुद्धिजीवियों को सोच में डाल देता।

इसी घटना का केंद्र था गाँव का परी खेल, एक ऐसा पर्व जिसमें बच्चे और बूढ़े, सब खुशी से झूमते, खेलते और फिर रात को किसी न किसी कथा में जुट जाते। लेकिन उस वर्ष यह पारंपरिक उत्सव यों नहीं रहा — वहाँ एक मंत्र ने दस्तक दी, जिसने गाँव वालों की ज़िंदगी में एक अलग ही साजिश घोल दी।


1. गाँव और लोग

गाँव का नाम था रौशनपुर— जहाँ घर मिट्टी के, छप्पर बुने हुए, और बच्चे नंगे पैर दौड़ते। गाँव में सर्दियाँ थीं लेकिन रौनक भी थी। चारों ओर हंसी, चाय की खुशबू, और लोग अपने कोठों पे आते-जाते रहते।

गाँव के लोगों में देहाती मुस्कान थी, जिनमें फिर भी एक पहेली सी बात थी — हर किसी के भीतर एक बात छुपी रहती थी, जो बाहर बहरापन भर देती।

रात को जब सभी घरों की बल्ब या दीये जलते, तब गाँव का चौपाल सजता — जहाँ बूढ़े चौराहा की चौकी पर ध्यान लगाकर बैठते, और गाँव के युवा गपशप में खो जाते।

उसी चौपाल का हिस्सा थे:

  • मिथिलालाल — गाँव के चौधर का बेटा, पढ़ा लिखा, गाँव की तारीख जानता।
  • रज्जो — स्कूल की अध्यापिका, जिसने स्कूल में सरल हिंदी पढ़ाई।
  • भद्रालाल — हलवा-ुल्हाला करने वाला, मीठा भी रखता और मसखरी भी।
  • छोटू — गाँव का नटखट बच्चा, जिसके गाल गालों पर लटे बाल और आँखों में शरारत थी।
  • सावित्री, रामलाल, मानसी — गाँव के अन्य भूमंडलीत्र लोग।

इनके अलावा वहाँ थी एक बुजुर्ग औरत — मातादेई, जिसे कोई बचपन से ही कहता कि उसके पास होती हैं कुछ जादुई बातें, मगर किसी ने कभी स्वीकारा नहीं।


2. मंत्र की शुरुआत

एक शाम जब चौपाल सज रहा था, छांव-सा मँडरा रहा था — गाँव के छोटे बच्चे चारों ओर जमा थे। अचानक मातादेई आई, हाथ में एक छोटी सी कांच की बोतल लिए। बोतल में एक पानी जैसा रंग भरा था। बोतल के गले में एक घुंघराले तार बँधा था।

चौधरों के सवालों के बीच, उसने कहा:
“यह है मेरा मंत्र — जो भी इसे सुनेगा, वह सच्चाई द्विगुणित रूप में देखेगा, और अँधेरे में जला एक दीप की तरह रोशनी महसूस करेगा।”

अनेक लोग हँसे — बूढ़े कहने लगे, “किस काम की ये बात? मंत्र तो बड़ों के लिए है।”
लेकिन बच्चे बोले, “बताओ, माँ! सुनाना है हमें भी।”

मातादेई बोली, “जो सपने में सच जानना चाहे, उसकी आवाज़ सुन लेगा मेरे मंत्र से।”

छोटू बोला, “क्या मैं इसका प्रयोग करूँ?”

मातादेई ने बोतल सभी के सामने रख दी और बोली, “कोई एक बच्चा बोलकर देखे — ‘मैं अपनी माँ को देखना चाहता हूँ’, और ये देखे कि क्या सच्च में वह दिखाई देती है।”


3. पहला प्रयोग

छोटू हिम्मत करके बोला,
“माँ, माँ, मेरी माँ मुझे बुला रही है क्या?”

बोतल से एक हल्की झनकार हुई, हल्का सा हलचल का एहसास हुआ, और छोटे ने आँखें बंद कीं।

खुद को अँधेरे कमरे में देखा — और फिर देखा माँ अपनी छत पे खड़ी है, जैसे हाथ हिला रही हो। छोटी चैटियाँ दरवाज़े तक दौड़कर आईं।

छोटू आँखें खोली — पर बोतल अँधेरे कमरे में थी और सब सामान्य था। लेकिन उसके दिल में एक अजीब खुशी — “माँ मुझे बुला रही थी।”

दूसरे दिन पुरानी दीवारों पर चर्चा फैली — “कहानी सच हो गई।”


4. मंत्र की उछाल

अँधेरे से निकलते ही, गाँव में बात तेज़ी से फैलती गई। प्रत्येक व्यक्ति अपने गुमनाम सवालों के साथ बोतल के पास पहुँचने लगता:

  • रामलाल बोला, “मैं देखना चाहता हूँ — मेरे बीते वर्षों की सच्चाई।”
  • सावित्री पूछी, “कहीं कोई ऐसा अस्तित्व तो नहीं मेरे आसपास जो मैं छोड़ आई हूँ?”
  • मानसी ने पूछा, “कहाँ गया मेरी पहली दोस्त?”

बोतल झनझनाई, और हर एक ने वही देखा — अपनी चाह को सच मानकर महसूस किया।
मगर धीरे-धीरे रौशनपुर में एक चमकदार भ्रम का वातावरण फ़ैलने लगा। हर कोई अपनी मनोकामनाओं को सच मान रहा था।


5. भ्रम की हिंट्स

कई दिन बीते। बारीक-सी साफ़-साफ आवाज़ें सुनने लगीं गाँव में:

  • भद्रालाल ने देखा कि उसके मीठे में कोई कड़वाहट भर रही है, पर सब कुछ सामान्य था।
  • रज्जो ने अपने स्कूल में बच्चों को देखना चाहा — उसकी आँखों में उनका आदर्श प्रकट हुआ, लेकिन हकीकत सामान्य रही।
  • मिथिलालाल ने सोचा कि वह दिल्ली के कॉलेज में बैठे, पढ़ रहा है — पर वो तो चौपाल पर ही था।

इस तरह हर एक भ्रम और वास्तविकता की एक धुंध बनी।


6. मिथिलालाल की चुनौती

एक सुबह मिथिलालाल ने कहा,
“ये बोतल अगर सच दिखाई दे, तो हम इसे चौपाल के बीच में रख दें और सारी रात इसे सुनें।”
सब तैयार हो गए।

रात को चमकीली चाँदनी में, चौपाल पर मशालें जलते और बोतल बीच में थी।
बोतल की झनकार से शुरू हुई हल्की ध्वनि — और अचानक एक आवाज़ गूँजी:

“जो मन मुझमें डूबेगा, उसे मिलेगा सच्चा मंत्र।”

वक़्त ठहर गया; कोई कुछ देख नहीं रहा था, बस रोशनी और अँधेरा झलमला रहा था।


7. सच सामने आता है

आग के पास बैठे हर व्यक्ति के भीतर एक सच झाँकने लगा:

  • रज्जो को लगा कि स्कूल की सारा जिम्मेदारी उसके कंधे पर है।
  • रामलाल को आख़िरी संस्कार का बोझ याद आया।
  • भद्रालाल को उसका अजनबीपन महसूस हुआ।

सबके भीतर एक गहरी रोमांचकारी अनुभूति उठा।


8. डर और चेतना

लेकिन देर तक अँधेरे में रहने वाले को थोड़ी घबराहट लगने लगी। कारण था — भीतर का सबसे बड़ा सच, जिसे देखकर लोग खुद से डर गए

कुछ चीखें निकल आयीं। कोई गिर पड़ा, कोई भागने लगा। चौपाल में अफरा-तफरी मच गई।

मातादेई बोली —
“मंत्र वास्तव में दिखाता है वही, जो तुम भीतर दबा रखे हो!”


9. असली हार्मनी

अगली सुबह, गाँव एक अजीब शांति में था। लोग घरों में अंदर जाकर टहल रहे थे, खुद से बातें कर रहे थे।

रबड़ी की माँ बोली, “मुझे डर था उसी बोतल के सामने जाने का।”
रज्जो बोली, “मैंने देखा कि बच्चों की पढ़ाई में कमी है, सो मैंने थोड़ा और समय देना शुरू किया।”

छोटू, जैसा चंचल था, बोला, “मैंने देखा — माँ मेरे पास आती है, मुझे प्यार देती है — अब मैं उसे रोज़ गले लगाऊँगा।”


10. नया जीवन

रौशनपुर के लोगों की ज़िंदगी धीरे-धीरे बदलने लगी।
हर दिन की शुरुआत अब एक छोटे से self-reflection से होती थी।
चौधर mithilal balloon ने गाँव की गतिविधियों का ब्योरा बनाना शुरू किया।
रज्जो कक्षा में बच्चों को नई सामग्री देने लगी।
भोतिक रुप से सब सामान्य थे, लेकिन भीतर सच के प्रति समर्पित महसूस कर रहे थे।


11. मंत्र की सही मंशा

बोतल अब घर-घर जाती लेकिन किसी को डर नहीं रहा था। हर किसी के भीतर पहले से ठहराव था।

मातादेई ने बताया —

“मैंने मंत्र सिर्फ दिखाया — पर असली ज्ञान, तुम सबने भीतर से पाया।”
इससे लोग मुस्कुराने लगे — कि सत्य कहीं बाहर नहीं, भीतर मौजूद होता है।


12. समापन

वर्षों बीत गए — रौशनपुर गाँव अब मंत्रित हो चुका मानों। मगर हर व्यक्ति को धीरे-धीरे समझ आया कि असली मंत्र तो खुद को जानना है।
चौपाल की शामें फिर से गपशप, हँसी, और प्यार से भर गईं — पर अब उनके बीच थी एक गहरी समझ, एक आन्तरिक संतोष


🔍 लेखक का सन्देश (बैठी सतेन्द्र की रचना)

जब भी हम अपने भीतर झाँकें — दुख, अहंकार, मोह-माया और डर — हर चीज़ हमारे समक्ष उभर आती है।
मुंशी प्रेमचंद ने “मंत्र” में यही सिखाया — न दिखावा, न ढोंग, बस आत्म-ज्ञान।

वर्ड्स की ये विस्तारित व्याख्या आपके पाठकों को न केवल कथानक से जोड़ती है, बल्कि स्वयं की आत्म-खोज के सफर में भी हौसला देती है।


🎯 निष्कर्ष

“मंत्र” सिर्फ एक कथा नहीं — यह एक आध्यात्मिक मार्ग है।
जहाँ लोग भयभीत न हों, बल्कि सहज हो कर अपने सत्य से मिलें।

मैंने इसे सरल भाषा में, बड़े विस्तार से लिखा है ताकि आपका ब्लॉग पोस्ट बने — ऐसा लेख, जो न पढ़कर बल्कि ज़िन्दगी में उतारा जाए।


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