परीक्षा

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परीक्षा: जीवन की आग में तपती कहानी

लेखक: सतेंद्र

“परीक्षा वही है जो भीतर तक झाँक ले — किताबें पढ़ना आसान है, लेकिन ज़िंदगी समझनी हो तो चरित्र की धूप में जलना पड़ता है।”


भूमिका:

यह कहानी समर्पित है उस संघर्षशील आत्मा को, जो अपने नैतिक मूल्यों और आदर्शों की खातिर हर उस राह से गुज़री जहाँ आसानी से समझौता हो सकता था, लेकिन उसने सत्य को चुना। यह कहानी प्रेमचंद की कालजयी रचना “परीक्षा” पर आधारित एक आधुनिक विस्तार है — एक ऐसा रूपांतरण जो आज के युवाओं, माता-पिता, और शिक्षकों के अंतर्मन को झकझोर दे।


पहला दृश्य: कस्बे की गलियों में

चुनीलाल एक सीधा-सादा, ईमानदार और आत्मगौरव से भरा युवा था। उसके पिता रामस्वरूप कस्बे की एक छोटी सी दुकान चलाते थे, और माँ सरस्वती देवी दिनभर चूल्हा-चौका, आँगन और तुलसी के चौरे के बीच जीवन का संतुलन बनाए रखती थीं।

चुनीलाल ने कभी भी अमीरी का सपना नहीं देखा। उसे गर्व था अपने सादगीपूर्ण जीवन पर। लेकिन उसकी सबसे बड़ी दौलत थी — उसकी ईमानदारी। यही उसे बाकी युवाओं से अलग बनाती थी।

बस्ती के लोग कहा करते:

“अरे वो चुन्नी? उसका तो जमीर अब भी ज़िंदा है। ऐसे लड़के आजकल कहाँ मिलते हैं?”


दूसरा दृश्य: परीक्षा का एलान

हाईस्कूल के बोर्ड परीक्षाओं की घोषणा हो गई। घर में हलचल शुरू हो गई। सरस्वती देवी ने तुलसी को जल चढ़ाकर मनौती मानी — “हे ठाकुरजी, मेरे बेटे को अच्छे नंबर दिलवाइये, बस।”

रामस्वरूप ने कहा:

“बेटा, तुम्हारी ये परीक्षा ही तुम्हारा भविष्य तय करेगी। मेहनत से डरना मत।”

चुनीलाल मुस्कराया — वो पढ़ाई में औसत छात्र था, लेकिन मेहनती था।

परीक्षा की तैयारी पूरे जोरों पर थी। लेकिन कस्बे में एक अजीब सी खबर फैल रही थी — “इस बार का पेपर आउट हो गया है। जो चाहे खरीद लो, पास हो जाओ।”

रघु नामक एक धूर्त लड़का, जो अमीर था और अक्सर स्कूल की फीस भी देर से भरता था, चुन्नी से बोला:

“भाई, क्या फायदा इस ईमानदारी का? ले ले पेपर, पास हो जाएगा।”

चुन्नीलाल की आँखों में जैसे आग जल उठी:

“पेपर खरीदकर मैं माँ-बाप की उम्मीदों को धोखा नहीं दे सकता। वो मुझे नहीं, मेरे चरित्र को पढ़ते हैं।”


तीसरा दृश्य: परीक्षा का दिन

परीक्षा की सुबह आई। घर में पूजा हुई, माँ ने माथे पर कुमकुम लगाया। चुन्नीलाल आत्मविश्वास के साथ निकला। लेकिन परीक्षा केंद्र के बाहर अफरा-तफरी थी। कई छात्रों के पास वही आउट हुआ पेपर था। नकल जोरों पर थी। निरीक्षक भी अनदेखा कर रहे थे।

जब वह हॉल में बैठा, और प्रश्नपत्र खोला — उसके मन में अजीब सी चुप्पी फैल गई। वो सारे सवाल वही थे जो उसे रघु ने दिखाए थे।

उसकी अंतरात्मा काँप उठी। वह पसीने-पसीने हो गया। एक ओर परीक्षा पास करने की हसरत थी, दूसरी ओर नैतिकता की आवाज।

उसे याद आया माँ का स्पर्श, पिता की आँखों की उम्मीद, और अपने आत्मसम्मान की गर्मी। उसने उत्तरपुस्तिका बंद कर दी, खड़ा हुआ, और निरीक्षक से कहा:

“सर, मैं यह परीक्षा नहीं दे सकता। यह प्रश्नपत्र पहले से लीक हो चुका है।”

पूरा हॉल सन्न हो गया। जैसे समय थम गया हो।


चौथा दृश्य: घर लौटना

परीक्षा बीच में छोड़कर चुन्नीलाल जब घर लौटा, तो माँ ने चिंता में पूछा:

“इतनी जल्दी? क्या हुआ बेटा? सब ठीक तो है?”

चुन्नीलाल ने सब बताया। माँ की आँखों से आँसू बह निकले, पर वो गर्व से बोलीं:

“मेरा बेटा असली परीक्षा में पास हो गया है। बाकी नंबर तो दुनिया देती है, पर आज तूने जो किया, वो आत्मा की डिग्री है।”

पिता ने पहली बार चुन्नी को गले लगाया और कहा:

“आज तू बड़ा हो गया बेटा।”


पाँचवाँ दृश्य: समाज की परीक्षा

समाचार पत्र में अगले दिन खबर छपी — “छात्र ने प्रश्नपत्र लीक होने पर दी परीक्षा छोड़ने की मिसाल।”

पूरा कस्बा हिल गया। स्कूल प्रशासन पर जाँच बैठी। रघु जैसे लड़कों की सच्चाई बाहर आई। और चुन्नी — वो एक प्रतीक बन गया ईमानदारी का।

कॉलेज में दाखिले के लिए उसे बुलावा आया। इंटरव्यू में प्रोफेसर ने पूछा:

“तुम्हारा कोई परीक्षा परिणाम नहीं है। फिर क्यों लें तुम्हें?”

चुन्नीलाल ने कहा:

“मैंने परीक्षा नहीं दी, क्योंकि मैं बेईमानी से जीतना नहीं चाहता था। अगर आप चाहते हैं कि मैं डिग्री लूँ, तो पहले मुझे खुद को साबित करने दीजिए।”

प्रोफेसर ने उसकी आँखों में देखा और कहा:

“बेटा, तुम्हारा चरित्र ही तुम्हारी मेरिट है।”


अंतिम दृश्य: आत्मा की परीक्षा

समय बीता। चुन्नी अब एक शिक्षक बन चुका था — वो शिक्षक जो बच्चों को सिर्फ किताबें नहीं, ज़िंदगी पढ़ाता था। हर साल वो परीक्षा से पहले अपने छात्रों को वही कहानी सुनाता:

“सच्ची परीक्षा वह है जहाँ तुम अकेले होते हो, और फिर भी सही को चुनते हो।”

और बच्चों की आँखों में चमक आ जाती।

उसकी दीवार पर एक तख्ती लगी थी:

“जहाँ ईमान बिकता नहीं, वहाँ ही भविष्य बनता है।”


निष्कर्ष:

इस आधुनिक युग में जहाँ सफलता के शॉर्टकट बिकते हैं, वहाँ चुन्नीलाल जैसे चरित्र समाज की ज़रूरत हैं। परीक्षा सिर्फ उत्तरपुस्तिका की नहीं होती — जीवन हर मोड़ पर हमसे परीक्षा लेता है, और उसमें पास वही होता है जो अपनी आत्मा को गिरवी नहीं रखता।


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