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Satendra
सतेन्द्र उत्तर प्रदेश की ग्रामीण धरती ग्राम सिमरिया दातागंज से उपजे, जनभावनाओं के सशक्त स्वर और समाज की अनकही व्यथा को कलमबद्ध करने वाले एक प्रतिभाशाली और जागरूक युवा लेखक हैं। ये न सिर्फ़ शब्दों से कहानी कहते हैं, बल्कि उन कहानियों से व्यवस्था, समाज और इंसानियत को आईना भी दिखाते हैं।
इनकी लेखनी केवल साहित्य नहीं, एक आंदोलन है—जिसमें आवाज़ है उस युवा भारत की, जो अपने संघर्षों से हारता नहीं, बल्कि उन्हें पन्नों पर अमर कर देता है।
सतेन्द्र एक संवेदनशील, भावनात्मक और समाज के प्रति गहरी सोच रखने वाले लेखक हैं, जो अपने जीवन के अनुभवों को आधार बनाकर लेखनी के माध्यम से समाज के अनछुए और अनदेखे पहलुओं को उजागर करते हैं। उनकी कहानियाँ केवल पढ़ी नहीं जातीं — उन्हें महसूस किया जाता है।
इनकी चर्चित कृति “पंचायत सहायक – गाँव का अफ़सर, जेब का फ़कीर” केवल एक किताब नहीं, बल्कि उस सच्चाई का दस्तावेज़ है, जो हर पंचायत कार्यालय की दीवारों के पीछे छिपी पीड़ा और प्रशासनिक उपेक्षा को उजागर करती है। इसमें संवेदना है, व्यंग्य है, और सबसे बड़ी बात—सच्चाई है।













