जलवायु परिवर्तन में असहाय खड़ा मानव

लेखक: सतेन्द्र

जलवायु परिवर्तन अब हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुका है। यह एक ऐसी समस्या है जो आज पूरी दुनिया को प्रभावित कर रही है, लेकिन भारत जैसे देश में इसका असर और भी ज्यादा दिखाई दे रहा है। सरल शब्दों में कहें तो जलवायु परिवर्तन का मतलब है कि पृथ्वी का मौसम बदल रहा है। पहले जहां मौसम की भविष्यवाणी आसान थी, अब यह अप्रत्याशित हो गयी है। कभी अचानक तेज बारिश से बाढ़ आ जाती है, तो कभी लंबे समय तक सूखा पड़ जाता है। यह सब इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रहा है, जैसे फैक्टरियों से निकलने वाला धुआं, गाड़ियों का प्रदूषण और जंगलों की कटाई। ये चीजें वातावरण में ग्रीनहाउस गैसें बढ़ा रही हैं, जिससे पृथ्वी गर्म हो रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि पिछले सालों में वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है और अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो साल 2100 तक 3 डिग्री तक बढ़ सकता है। भारत में यह समस्या और गंभीर है क्योंकि हमारी आबादी हद से ज्यादा है और अधिकतर लोग कृषि पर ही निर्भर हैं। आज हम जलवायु परिवर्तन के कारणों, प्रभावों और समाधानों पर बात करेंगे, साथ ही पिछले एक साल में भारत में हुई कुछ बड़ी घटनाओं का जिक्र करेंगे, जो इस समस्या की गंभीरता को दिखाती हैं।

जलवायु परिवर्तन का कारण इंसान है। हम कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन जलाते हैं, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं। भारत में बिजली बनाने के लिए अभी भी 75 प्रतिशत कोयले पर निर्भरता है, जो प्रदूषण का बड़ा स्रोत है। जंगलों की कटाई भी एक बड़ा कारण है। जंगल कार्बन को सोखते हैं, लेकिन जब हम उन्हें काटते हैं तो ये गैसें और बढ़ जाती हैं। पिछले कुछ सालों में जंगली आग ने जंगलों को और नुकसान पहुंचाया है, जिससे कार्बन सोखने की क्षमता 25 प्रतिशत कम हो गई है। कृषि और उद्योगों से मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें भी निकलती हैं। विश्व मौसम संगठन कहता है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म साल था, और 2025 में यह सिलसिला जारी है। अगर हम उत्सर्जन नहीं रोकेंगे तो मौसम और ज्यादा खराब होगा।

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव साफ दिख रहे हैं। यूरोप में गर्मी की लहरों से हजारों लोगों की मौत हुई। अमेरिका में जंगली आग से अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे द्वीप डूबने का खतरा है। स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है जैसे गर्मी से तनाव बढ़ना। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि गर्मी से 3.6 अरब लोग प्रभावित हो सकते हैं। खाने की सुरक्षा भी खतरे में है, क्योंकि सूखा और बाढ़ फसलों को बर्बाद कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि 2025 में संघर्ष, आर्थिक समस्याएं और मौसम की मार से करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर हैं। जैव विविधता भी कम हो रही है, 10 लाख प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। आर्थिक नुकसान भी बड़ा है, विश्व बैंक कहता है कि 2030 तक वैश्विक जीडीपी में 2.7 ट्रिलियन डॉलर की कमी आ सकती है।

भारत में जलवायु परिवर्तन का असर सबसे ज्यादा है। 2025 में जनवरी सबसे गर्म महीना रहा, तापमान 1.5 डिग्री ऊपर पहुंचा। दिल्ली में जून में 43 डिग्री, कोलकाता में 39 डिग्री तापमान ने लोगों को परेशान किया। पानी की कमी बड़ी समस्या है, पश्चिम बंगाल में 40 प्रतिशत कुएं सूख गए, असम में 30 प्रतिशत, कोलकाता में भूजल 15 प्रतिशत नीचे गिरा। 54 प्रतिशत भारत जल संकट में है। बाढ़ और चक्रवात बढ़े हैं, 2025 में मुंबई और कोलकाता की बाढ़ से 1.5 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। बिजली गिरने से मार्च-अप्रैल में 250 मौतें हुईं। आर्थिक रूप से भारत की जीडीपी का एक तिहाई हिस्सा प्रकृति पर निर्भर है और साल 2100 तक 10 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

अब बात करें पिछले एक साल की, यानी अगस्त 2024 से अगस्त 2025 तक की घटनाओं की। इस दौरान भारत में जलवायु परिवर्तन की वजह से कई बड़ी आपदाएं आयी। 2024 के पहले नौ महीनों में 93 प्रतिशत दिनों में चरम मौसम रहा, जैसे गर्मी की लहरें, बाढ़, सूखा, भूस्खलन और चक्रवात। इससे 3238 लोगों की मौत हुई, 3.2 मिलियन हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई, 2.35 लाख घर नष्ट हुए और 9457 पशु मारे गए। हिमाचल प्रदेश में अगस्त 2024 में बादल फटने से फ्लैश फ्लड आई, कई लोगों की मौत हुई और गांव बह गए। उत्तराखंड में अगस्त 2025 में बादल फटने से फ्लैश फ्लड और भूस्खलन हुए, उत्तर्काशी जिले में कई मौतें हुईं। मुंबई में अगस्त 2025 में रेड अलर्ट जारी हुआ, छह घंटे में सात इंच बारिश से शहर डूब गया, रेल और सड़कें बंद हो गईं। कोटा, राजस्थान में जुलाई 2025 में भारी बारिश से शहर नदी जैसा बन गया, भ्रष्टाचार की वजह से ड्रेनेज खराब होने से समस्या बढ़ी। कश्मीर में अगस्त 2025 में अचानक एक घंटे की बारिश से बाढ़ आई, 37 लोग मारे गए। नई दिल्ली में अगस्त 2025 में भारी बारिश से सड़कें जलमग्न हो गयी। केरल में 2025 में मडस्लाइड हुआ, भारी बारिश से पहाड़ टूटे। सूखे की बात करें तो, 2024-2025 में दक्षिण भारत के कई हिस्सों जैसे छत्तीसगढ़ में झीलें सूख गईं, किसान परेशान हुए। पूर्वी तट पर चक्रवात बढ़े, जैसे पुरी, चेन्नई, नेल्लोर में 2024-2025 में तूफान आए, लाखों लोग प्रभावित हुए। ये घटनाएं दिखाती हैं कि जलवायु परिवर्तन अब रोज की समस्या है, और 40 प्रतिशत जिलों में बाढ़ से सूखे की ओर बदलाव हो रहा है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए ही दुनिया और भारत प्रयास कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर 2025 में ब्राजील में सीओपी30 सम्मेलन होने वाला है, जहां उत्सर्जन कम करने पर बात होगी। भारत ने 2030 तक 50 प्रतिशत स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य हासिल कर लिया है, और 2070 तक नेट जीरो का वादा किया है। लेकिन अभी 467 अरब डॉलर की जरूरत है। समाधान के रूप में, जंगलों की रक्षा करें, वर्षा जल संचयन बढ़ाएं, शहरों में हरे क्षेत्र बनाएं। किसानों के लिए गर्मी सहने वाली फसलें विकसित करें। शिक्षा में जलवायु परिवर्तन को शामिल करें। सरकार, लोग और कंपनियां मिलकर काम करें।

अंत में, जलवायु परिवर्तन हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम अब नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। छोटे-छोटे कदम जैसे पेड़ लगाना, बिजली बचाना, प्लास्टिक कम करना से शुरुआत करें तभी साथ मिलकर हम इस समस्या से लड़ सकते हैं।

Categories:

Tags: