मेरी लिखी कविताएँ

मैं पंचायत सहायक हूँ कहीं

सरकारी मुहर नहीं पास है,
फिर भी गाँव का विश्वास है।
काम बहुत, पर नाम नहीं,
मैं पंचायत सहायक हूँ कहीं।

पैदल चलूँ गाँव की गलियों में,
काग़ज़ ढोऊँ बिन तंगी में।
रजिस्टर मेरे कंधों का भार,
फिर भी कहें, “तू बस बेकार।”

ना पद स्थायी, ना वेतन साफ़,
कभी आए पैसा, कभी हो माफ़।
हर योजना का बनूँ हूं चेहरा,
पर मेरा कोई नहीं बसेरा।

सचिव-प्रधान को दूँ मैं सलामी,
फिर भी जले मेरी जिन्दगानी।
अधिकार नहीं, कर्तव्य भारी,
किससे कहूँ अपनी लाचारी?

कभी-कभी दिल रोता है,
चुपचाप भीतर सोता है।
माँ पूछे — बेटा कब छुट्टी?
क्या कहूँ — ये नौकरी सच्ची?

जनता कहे — तू है सहारा,
प्रशासन कहे — तेरा न किनारा।
बीच भंवर का मझधार हूँ मैं,
फिर भी सेवा को तैयार हूँ मैं।

हर हाल में निभाया फर्ज़ है,
सीने में छुपा एक मर्म है।
सरकारों की नज़रों से दूर सही,
पर जन-जन की आस हूँ —मैं पंचायत सहायक हूँ कहीं!

नेता बदलते रहते हैं बस

नेता बदले, बातें बदलीं,
पर हालात पुराने हैं।
कुर्सी बदली, वादे बदले,
पर सपने फिर वीराने हैं॥

हर पाँच साल में चेहरा बदला,
पर नीयत वो ही लायी है।
नेता बदलते रहते हैं बस,
पर नीति बदल कहाँ पायी है?

बोले थे – रोशनी देंगे,
हर गाँव को तारों से भर देंगे।
अब बिजली का बिल है भारी,
जेबें हुई खाली, भरते रहे उधारी॥

हर पाँच साल में चेहरा बदला,
पर नीयत वो ही लायी है।
नेता बदलते रहते हैं बस,
पर नीति बदल कहाँ पायी है?

हम चुप थे, और चुप ही रहे,
इस मौन से सब हार गए।
जिन्हें कहना था सच का किस्सा,
पर वो डर के दीवार गए॥

चलो अब शब्दों की तलवार उठाओ,
सच की मशाल जलाओ तुम।
नेता बदलना ही काफी नहीं,
अब सोच बदल कर दिखाओ तुम॥

तू पास नहीं… फिर भी मेरी है

तेरी आँखों में, जब मैंने देखा,
जहाँ सारा रुक गया वहीं।
पहली नज़र में, जो तू मुस्काई,
दिल ने कहा, बस रुक जा यहीं… रुक जा यहीं।

तू पास नहीं, फिर भी मेरी है,
हर धड़कन में, तू ही तो बसी है।
बिन तेरे सब लगे अधूरा,
तू ही तो, यादों में सजी है।

तेरी आवाज, सुने बिन भी,
हर पल, तुझसे बातें होती हैं।
तू मुझे मिले न मिले, कोई गम नहीं,
तेरे होने से ही, मेरी रूह रोशन है।

तू पास नहीं, फिर भी मेरी है,
हर मोड़ पर, तू ही तो खड़ी है।
तेरे बिन सांसे भी चुप है,
खुशबू उन पन्नों मे बसी है।

तेरी ख़ामोशी में भी, मैंने तेरा नाम सुना है,
तेरे जाने पर भी, तुझमें ही खुद को चुना है।
मोहब्बत तुझसे थी, और सदा रही है,
तू दिल के कोनों में बसी, और सदा रही है।

तू पास नहीं, फिर भी मेरी है।
तू पास नहीं, फिर भी मेरी है।।

सपनों की हत्या

मैं तो बस अल्फ़ाज़ सजाता,
नीले अंबर को पन्ना बनाता।
हर लम्हा कविता बन जाती,
मन का दर्द सब व्यथा सुनाता॥

पर पापा बोले – “ये सब छोड़ो,
यूँ ख़्वाबों में मत झूला-झूलो।
किताब नहीं, फ़ॉर्म भरो अब,
कहीं क्लर्क या अफ़सर बन लो॥”

माँ बोली – “शादी करनी है,
रोज़गार की जिम्मेदारी है।
तेरा लिखना रोटी देगा?
बोलो, ये भी कोई नौकरी है?”

रिश्तेदार हँसे बेहिसाब,
जैसे मैं हूँ कोई खराब ख़्वाब।
“लेखक? हाहा! क्या बात है!
सपना देख, अब जाग भी जा रे!”

नज़रों से ना आँक मेरे ख्वाबों को,
हर लफ़्ज़ मेरा कोई जुनून है।
राह मत रोको मेरे मन की,
ये कलम नहीं, मेरा खून है॥

🙏आप सभी को समर्पित🙏

हाथ में हाथ जब मिलते हैं, बनते हैं अफ़साने
एकता की लौ से जगमगाते हैं ज़माने।

क्रॉप सर्वे का बहिष्कार सबने मिलकर किया,
एकता का परचम बुलंदियों पर दिया।

शांतिपूर्ण आंदोलन की मिसाल बन गए,
अपने हक़ की खातिर वो ढाल बन गए।

सच की राह पे जब वो क़दम बढ़ाते हैं,
पंचायत सहायक फिर इतिहास बनाते हैंl👍

🙏आशीर्वचन🙏