लेखक: सतेन्द्र
बरसात का समय था तेज बारिश हो रही थी। बदायूँ कॉलेज में इंजी० सुरेश चन्द्र क्लास ले रहे थे। तभी गेट की ओर से किसी की धीमी सी आवाज सुनाई दी—”मे आई कम इन सर?” भूरी आंखें, लंबा कद, गोल चेहरा बारिश में तरबतर भीगा हुआ, स्कूल बैग लिए लड़का गेट पर खड़ा था। “यस, कम इन,” अध्यापक ने कहा। अंदर आकर लड़का बोला, “जी, मेरा नाम राहुल है। मैं इंजीनियरिंग का नया स्टूडेंट हूं। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि केमिकल इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष की क्लास कहाँ है?” “यह प्रथम वर्ष ही है और मैं तुम्हारा क्लास टीचर हूं। वहां जाकर बैठ जाओ।” पूरी क्लास के स्टूडेंट चुपचाप राहुल को घूरे जा रहे थे। राहुल आखिरी बेंच पर जाकर बैठ गया। तभी उसने देखा कि पहली बेंच पर बैठी दो लड़कियाँ उसे देखकर मुंह छुपाते हुए हँस रही थीं।
राहुल को पुस्तके पढ़ने का बहुत शौक था। वह हमेशा कोई न कोई पुस्तक पढ़ता रहता था। एक दिन राहुल पुस्तकालय में पढ़ने के लिए पुस्तक ढूंढ रहा था, तभी उसके पीछे से किसी की आवाज सुनाई दी, “अरे बारिश का कछुआ आज पुस्तकालय में!” राहुल ने पीछे मुड़कर देखा, दो लड़कियां उसके पास ही खड़ी थीं। सुनहरी आंखें, काले बाल, गेहूंआ रंग और हल्का कद—ये दोनों वही थीं, जो बारिश वाले दिन राहुल को देखकर हँस रही थीं। “हाय! मेरा नाम अंजली है,” उस लड़की ने राहुल की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा। राहुल ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया। “ओह… तो लगता है बदायूँ इंस्टिट्यूट में नए हो?” अंजली ने हंसते हुए दुबारा पूछा। “जी, मेरा नाम राहुल है,” राहुल ने बड़ी ही विनम्रता से उत्तर दिया और फिर अपनी पुस्तक के पन्ने पलटने लगा। “कल बारिश काफी तेज हो रही थी न? इनसे मिलो, मेरी दोस्त नेहा।” “आपसे मिलकर अच्छा लगा नेहा जी, लेकिन मैं अभी कुछ पढ़ रहा हूं,” राहुल ने दोनों को नजरअंदाज करते हुए जवाब दिया। अंजली ने राहुल की ओर देखते हुए कहा, “क्या तुम्हें पता है अगले सप्ताह हमारे कॉलेज में गेम्स होने वाले हैं? क्या तुमने भी भाग लिया है?” “जी नहीं।” “शक्ल से तो बड़े अमीर और पागल लगते हो,” अंजली ने मुस्कुराते हुए कहा। “जी नहीं, मैं गरीब और होशियार हूं,” बोलकर राहुल पुस्तकालय से अपनी क्लास की ओर चला गया।
अंजली देखने में जितनी सुंदर और खुशमिजाज थी, उतनी ही शरारती भी। और हो भी क्यों ना, वह बदायूँ के एक बहुत बड़े व्यापारी वीरेंद्र प्रताप सिंह की इकलौती बेटी जो थी। अंजली इस बार क्या करने वाली थी, इसका किसी को अंदाज़ा नहीं था, लेकिन इस बार शायद उसका निशाना केमिकल इंजीनियरिंग का राहुल ही होगा। “यार, तू यह सब छोड़ क्यों नहीं देती? क्यों किसी को खामखाँ परेशान करना?” अंजली की दोस्त नेहा ने उसे प्यार से डांटते हुए कहा। “क्या यार, तू भी… इतना मत परेशान हुआ कर। फिर भी हम उसे बाद में बता ही देंगे कि यह सिर्फ एक मजाक था बस,” अपने मेकअप का सामान बैग में रखते हुए अंजली ने नेहा से कहा। लेकिन अंजली भी आखिर कहाँ जानती थी कि उसका एक छोटा सा मजाक राहुल के सपनों के आड़े आएगा। शायद नियति ने उसी दिन अपनी चाल चल दी थी, और अंजली… वो तो बस एक मोहरा थी — इस खेल में, जिसे वो अब भी ‘मज़ाक’ समझ रही थी।
अगले दिन खेल की सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं। सुबह-सुबह राहुल कॉलेज पहुंचा तो उसने देखा कि बाइक रेसिंग के लिए उसका नाम पहले ही दर्ज है। “अरे राहुल, तुम इतना लेट…” खेल टीचर ने पूछा। “जी सर, वो मेरा नाम बाइक रेसिंग…” राहुल कुछ और कह पाता कि तब तक टीचर जा चुके थे। राहुल ने अपना बैग उठाया और ड्रेसिंग रूम में चला गया। वहीं थोड़ी दूरी पर अंजली भी खड़ी थी, वह उस पर चुपके से नज़र रखे हुई थी। आज उसने गुलाबी रंग की स्कर्ट और टॉप पहना था—इन कपड़ों में वह पहले से अधिक सुंदर और आकर्षक लग रही थी। “तुम्हें पता है नेहा, मैं कौन हूं?” अंजली ने बड़े ही मिजाज में नेहा से पूछा। “अरे कौन नहीं जानता आपको मैडम, सब तुम्हे ही तो देखने आये हैं,” नेहा ने उत्तर दिया। “मैं वो हूँ जो बरसात के कछुए को भी बाइक पर बिठाने का दम रखती है। चलो-चलो… बहुत मजा आएगा, रेस शुरू होने वाली है।” लेकिन राहुल अभी भी सोच में था कि आखिर उसका नाम बाइक रेसिंग के लिये किसने दिया होगा। तभी कैप्टन जोर से चिल्लाया, “3… 2… 1… गो!” सभी खिलाड़ी रेस करने लगे। जीतने वाले को बदायूँ रेलवे स्टेशन रोड से होकर पुलिस लाइन का का चक्कर लगाते हुए कॉलेज सबसे पहले पहुँचना था। “सर… सर… राहुल की बाइक खाई में गिर गई!” दूर सड़क पर खड़ा लड़का जोर-जोर से चिल्ला रहा था। तुरंत ही राहुल को सिटी हॉस्पिटल ले जाया गया।
हॉस्पिटल में राहुल बेहोशी की हालत में था। “उसे क्या हुआ, क्या वह होश में आया, कितनी चोट…?” क्लास टीचर सुरेश चन्द्र ने डॉक्टर से बड़ी ही हड़वड़ी में पूछा मानों उनके ऊपर कोई पहाड़ टूट पड़ा हो। हॉस्पिटल के बन्द कमरे में सभी छात्र एकदम चुप थे। नेहा और अंजली दोनों वहीं मौजूद थीं। तभी प्रिंसिपल सर भी आ गए। “अभी हम कुछ नहीं कह सकते, सिर में अधिक चोट है,” डॉक्टर ने जवाब दिया। “सिर के बल गिरने से राहुल के मस्तिष्क में खून जमना (ब्लड क्लॉटिंग) एक गंभीर समस्या है। अगर इसके मस्तिष्क का रक्तस्राव सामान्य न रहा तो वह कितने दिन और जीवित रहेगा, ये कहना मुश्किल है।” “सर, राहुल की बाइक में तो ब्रेक ही नहीं है!” बाहर से किसी की तेज आवाज आई। “किसका काम है ये… आखिर किसने किया होगा यह सब?” प्रिंसिपल ने सबकी ओर कड़ी नजर से देखा। तभी अंजली अचानक हॉस्पिटल के कमरे से बाहर दौड़ी और जाकर मैदान में चुपचाप बैठ गई। “क्या हुआ अंजली?” नेहा ने अंजली के पास आकर पूछा। अंजली की आंखों में आंसू थे, जोकि उसकी की गलती के साफ गवाही दे रहे थे। “क्या अंजली, तुमने ये सब किया? मुझे तुमसे बिल्कुल भी ये उम्मीद नहीं थी। हॉस्पिटल में राहुल मरने की हालत में है। डॉक्टरों ने कह दिया कि उसके पहले जैसे होने की उम्मीद ना के बराबर है। अंजलि तुमने उसकी जिंदगी मानों तबाह कर दी। “मैं तो सिर्फ राहुल से मजाक…” अंजली एकदम से नेहा को गले से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगी।
राहुल की दो महीने बाद अस्पताल से छुट्टी हुई। वहाँ से वह सीधे अपने घर चला गया। बीते दिनों कॉलेज में जो कुछ भी हुआ, उसने गाँव में रहने वाले अपने माता-पिता को कुछ नहीं बताया। राहुल का बचपन से एक ही सपना था—कि वह खुद को केरल के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो में एक सफल पद पर देखे। पर अब, जाने कहाँ… “अंजली, तुम्हें प्रिंसिपल सर बुला रहे हैं,” कॉलेज के गॉर्ड ने कहा। अंजली ने धीरे से प्रिंसिपल के ऑफिस में प्रवेश किया। सब कुछ एकदम शांत था। अंजली बोली, “सर, वो मैं… मैं तो सिर्फ—” “चुप रहो तुम!” प्रिंसिपल सुरेश चन्द्र ने तेज़ आवाज़ में चिल्लाते हुए कहा, “रेसिंग बाइक का ब्रेक निकालकर उसे जान से मार डालना चाहती थी तुम? चली जाओ यहां से, तुम्हें कॉलेज से निकाला जाता है।” “नहीं सर, दरअसल बाइक का ब्रेक खराब हो गया था,” राहुल ने धीरे से उत्तर दिया। अब राहुल भी कॉलेज पहुँच चुका था। “अरे राहुल, अब कैसी तबीयत है तुम्हारी?” प्रिंसिपल ने स्नेह के साथ कहा। राहुल ने अंजली की आँखों में नजरे मिलाते हुए कहा, “शायद कुछ लोगों की दुआएँ थीं, और हम बच गए।” राहुल के दिल में अंजली के लिए कोई गुस्सा नहीं था। “सर, आप अंजली को कृपया कॉलेज से मत निकालिए।” यह कहकर राहुल बाहर चला गया। अब अंजली को भी अपनी की हुई गलती का अफसोस होने लगा था। भाई आत्मग्लानि में डूबती जा रही थी। अब उसे एहसास होने लगा कि इस समय राहुल को उसकी ज़रूरत है, यह जानते हुए भी कि डॉक्टरों ने कह दिया है कि राहुल कुछ साल ही जिंदा रह पाएगा। “आख़िर वजह भी तो मैं ही हूँ, जो राहुल को अपनी जिंदगी में इतना दुख झेलना पड़ रहा है।” अंजली ने खुद को कोसते हुए कहा। मुझे इसकी यही सजा मिलनी चाहिए। मैंने बस एक पल की खुशी के लिए राहुल तुमको जीवन भर के लिए कष्ट दे दिया।
राहुल पार्क में अकेला बैठा था। सब कुछ सुनसान सा था। “राहुल मुझे माफ कर दो, प्लीज़,” यह अंजली की आवाज़ थी। “मेरा इरादा तुम्हें चोट पहुँचाने का नहीं था।” “हूँ… बैठ जाओ,” राहुल ने एक नजर अंजली को देखा और चुपचाप पार्क में लगे पेड़ों की घनी पत्तियों को निहारने लगा। मानो उसने जीवन में वैराग्य धारण कर लिया हो और प्रकृति से कुछ उम्मीद कर रहा हो। “मैं नहीं जानती कि तुमने मुझे माफ किया या नहीं, लेकिन मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ… मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, राहुल,” इतना कहते ही अंजली की आँखों में आँसू भर आए। राहुल अभी-भी पेड़ों की घनी पत्तियों के बीच निहारता रहा जैसे वह उनमें ही में अपनी खुशियाँ तलाश रहा हो। तभी राहुल ने अपनी नजर ऊपर की और बादलों की ओर देखते हुए कहा, “अंजली यह मौसम कितना सुहावना है ना… सब जैसे बदल सा गया हो… कितना शांत, कितना खुश हूँ ना मैं आज।” “राहुल… राहुल…” पुकारते हुए अंजली ने ज़ोर से उसे गले से लगा लिया। “राहुल… राहुल, आई लव यू।” राहुल बिल्कुल चुप था। “क्या हुआ राहुल?” अंजली ने पूछा। राहुल ने कहा, “यह प्यार… कुछ और ही है।” अंजली अब भी इसका मतलब नहीं समझ पाई थी। जिंदगी हमें ऐसे ही कई बार मौके देती है और हम उसे समझ ही नहीं पाते।
अगले कुछ दिन बाद अंजली ने अपने घर पर सब बता दिया कि वह कॉलेज के छात्र राहुल से प्यार करती है।उससे शादी करना चाहती है और अपनी पूरी जिंदगी उसके साथ ही बिताना चाहती है । “अंजली, बस! यह कभी सच नहीं हो सकता। वह लड़का जिसके जीने-मरने का कुछ पता नहीं, वह आज है, कल होगा या नहीं… नहीं, मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगा,” अंजली के पिता वीरेंद्र प्रताप सिंह ने उसे डाँटते हुए कहा। अंजली के माँ चुपचाप खड़ी सब देखती रही पर पिता जी सामने कुछ भी कहने की हिम्मत न हुयी। अंजली के पिता कठोर स्वभाव के थे लेकिन उनके मन में अंजलि के भविष्य के प्रति गहरा डर भी था। “पिताजी, आप जैसा कहेंगे मैं मान लूँगी, पर एक बार… एक बार बस, आप मेरे लिए राहुल से मिल लीजिए,” अंजली ने बस इतना कहा और रोते हुए अपने कमरे में चली गई।
अगले दिन राहुल, अंजली के पिता से मिलने घर आया। “माफ़ी चाहूँगा सर… मैं आपकी बेटी अंजली से बहुत प्यार करता हूँ। मेरी ग़रीबी और मेरी बची उम्र भी, मेरे प्यार को मुझसे जुदा नहीं कर सकती। मैं खुद को देश की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी इसरो में एक ऊँचे पद पर देखना चाहता हूँ,” राहुल ने एक ही साँस में इतना सब बोल दिया। “बस… तो ठीक है, अगर तुमने अपनी बची हुई ज़िंदगी में इसरो के अधिकारी बनकर दिखा दिया, तो अंजली तुम्हारी,” वीरेंद्र प्रताप सिंह ने गंभीर स्वर में कहा। राहुल के शरीर से तो मानो सारा खून सूख गया। उसने अंजली की तरफ देखते हुए एक लंबी साँस ली और बोला, “सर, मुझे मंज़ूर है।” “और यह भी ध्यान रहे कि तुम इस बीच अंजली से कभी भी नहीं मिलोगे,” अंजली के पिता ने बड़ी ही सख़्ती से कहा। अंजली ने राहुल की ओर देखा, राहुल का चेहरा तटस्थ था जों उसके पिता से अभी भी ऑंखें मिलाये था, मानों अपने ऊपर गिरे किसी पहाड़-सी विपत्ति को हुए था।
तभी अंजली चिल्ला कर बोली, “पिताजी! यह शर्त नहीं… सौदा है।” वीरेंद्र प्रताप ने उसकी बातों का कोई जबाब नहीं दिया जैसे उनके कठोर कानों तक अंजली का दर्द पहुँचा ही न हो। अंजली ने दौड़कर राहुल को गले से लगा लिया, “वादा करो राहुल कि तुम लौट कर आओगे, तुम मुझसे शादी ज़रूर करोगे, तुम्हारी अंजली मरते दम तक तुम्हारा इंतजार करती रहेगी… वादा करो राहुल… वादा करो…” अंजली फूट-फूट कर रोने लगी। राहुल ने लंबी साँस खींची और अपनी सिसकियाँ रोकते हुए बोला, “मैं तुमसे वादा करता हूँ अंजली।” यह कहकर राहुल चला गया। अंजली लगातार उसकी ओर देखती रही। पर उसने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा—शायद अपने आँसू छुपा रहा था। उस दिन वीरेंद्र प्रताप को संतोष हुआ की राहुल उनके परिवार के बीच अब कभी नहीं आयेगा पर अंजली… मानों उसकी आत्मा को राहुल अपने ही साथ ले गया हो। अब दोनों के प्यार और जिंदगी के बीच एक दीवार खड़ी हो गयी इंतज़ार की। एक-एक दिन मानों महीनों जितना लम्बा लगता था उसने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और दिन-रात राहुल का इंतजार करती रही।
करीब दो साल बाद, अंजली को राहुल का फ़ोन आया: “कैसी हो अंजली तुम? अंजली, मैं आ रहा हूँ तुम्हारे पास… तुमसे मिलने आज दोपहर की ट्रेन से। माँ और पिताजी को भी बता देना…” कहते हुए राहुल बहुत ख़ुश था। सुनते ही ख़ुशी से अंजली की आँखों में आंसू आ गये। आज उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह कब से उम्मीद लगाए राहुल का इंतज़ार कर रही थी। “राहुल, मुझे विश्वास था कि तुम ज़रूर आओगे! जल्दी आ जाओ… अपना ख़्याल रखना…” जल्दी-जल्दी इतना कहकर अंजली ने फ़ोन रख दिया। अंजली ने तुरंत अपनी फ्रेंड नेहा को भी फ़ोन करके यह खबर दी। राहुल ने आज साबित कर दिया था कि अगर इंसान अपनी ज़िद पर आ जाए, तो वह अपने जीवन में किसी भी मुकाम को पा सकता है। आज राहुल केरल स्थित इसरो के सबसे ऊँचे पोस्ट पर था। उसकी मासिक वेतन करीब नौ लाख रुपये थी। और अंजली भी अब एक अध्यापिका बन चुकी थी। कुछ क्षण बाद राहुल के फ़ोन की घंटी बजी—ट्रिंग-ट्रिंग… राहुल ने फ़ोन उठाया। फ़ोन के दूसरी ओर से किसी के रोने की आवाज़ थी:
“अंजली… अंजली अब इस दुनिया में नहीं रही…” रोती हुई अंजली की माँ ने कहा। “वह तुमसे ही मिलने बरेली स्टेशन जा रही थी… अचानक उसकी कार का एक्सीडेंट हो गया।” यह सुनते ही राहुल ने फ़ोन पटक दिया। उसका सिर चकराने लगा जैसे किसी दुश्मन ने एक पल में उसका सब कुछ छीन लिया हो। उसका दिल दर्द से फटा जा रहा था “अंजली… मेरी अंजली…” नाम पुकारते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा। राहुल एकाएक उठा उसने अपनी कमीज से अपने आंसू पोछे और खुद से कहा। “नहीं… नहीं… ये नहीं हो सकता। यह प्यार… कुछ और ही है। यह प्यार! कुछ और ही है! यह कभी नहीं मरता… और इसे मुझसे कोई नहीं छीन सकता। यह प्यार! कुछ और ही है…” बस यही बड़बड़ाते हुए राहुल फिर से अंजली के ख्वाबों में डूब गया। अंजली की मृत्यु के बाद वीरेंद्र प्रताप सिंह के घर में मातम पसर गया। नेहा अपनी दोस्त अंजली के मृत शरीर के पास बैठी सिसकियाँ भर रही थी। “वह नहीं आया ना… राहुल अब तक नहीं आया,” नेहा ने कहा।
अंतिम संस्कार का समय हो चुका था। “अरे, उसका क्या इंतज़ार करना… वह लड़का अब क्यों ही आएगा,” भीड़ में से एक बुज़ुर्ग ने तेज स्वर में कहा। यह क्या… राहुल आ गया नेहा ने विस्मय से कहा। राहुल के साथ और भी कई लोग थे। वह बहुत ही खुश दिखाई दे रहा था। सभी ने नए कपड़े पहने थे। राहुल हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए था। उनमें से कुछ लोग शहनाई और ढोल बजाते हुए आ रहे थे। “अरे कौन है ये पागल? कोई भगाओ इसे…”अंजली के शव के पास लगी भीड़ में से एक आदमी ने कहा। “यह राहुल को आज हो क्या गया है…” नेहा ने आश्चर्य से राहुल की ओर देखते हुए कहा। राहुल अंजली के शव के पास आ चुका था। वहां मौजूद सभी की निगाहें राहुल पर टिकी थीं। “अंजली… उठो अंजली! मैं आ गया हूँ… तुम्हारा राहुल, तुम सुन रही हो न? आज मैं इसरो का चीफ़ हूँ। पिताजी अब कुछ नहीं कहेंगे… उठो…उठो… मैं तुमसे किया वादा पूरा करने आया हूँ।” वहाँ भीड़ में खड़े सभी के मन में एक ही सवाल था—वादा? कैसा वादा?
राहुल ने अपने कोट की बायीं जेब में हाथ डाला। उसके हाथ में एक हीरे की अंगूठी थी। अंजली के हाथ में अंगूठी पहनाते हुए राहुल बोला, “अरे… आप लोग ऐसे क्यों देख रहे हो? सभी चुप क्यों खड़े हो?” फूलों का गुलदस्ता अंजली के हाथों में देते हुए राहुल ने अंजली के माथे को हल्के से चूमा। “हमारी शादी हुई है… मैंने अपना किया हुआ वादा पूरा किया है। आप लोग हमें हमारी शादी की बधाई भी नहीं दोगे?” राहुल ने लंबी साँस भरते हुए, लड़खड़ाती आवाज़ में कहा। अब वह भी अपनी आँखों के आँसुओं को रोक नहीं पा रहा था। अंजली को पुकारते हुए, “अंजली… अंजली, तुम हमेशा पूछती थीं न कि यह प्यार क्या है? यह प्यार… यह प्यार! कुछ और ही है… यह कभी नहीं मरता। दुनियाँ कोई ताक़त तुम्हें मुझसे छीन नहीं सकती है।”
रोते हुए राहुल ने अंजली को गले से लगा लिया। उसके साथ ही पूरा माहौल ग़म की चीख़ों में तब्दील हो गया। एक बार फिर सब में अंजली की मौत के मातम ने सभी को अपने आगोश में ले लिया। लेकिन एक आवाज़ सबके कानों में साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थी। यह आवाज़ अंजली के पिता वीरेंद्र प्रताप की थी: “यह प्यार! कुछ और ही है… वाह! यह प्यार! कुछ और ही है… यह प्यार! कुछ और ही है…”
…पर्दा गिरता है…





